भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पाँच वर्षों का मुकम्मल / अश्वघोष
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:29, 31 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वघोष |संग्रह=जेबों में डर / अश्वघोष }}[[Category:गज़...)
पाँच वर्षों का मुकम्मल दीजिए पहले हिसाब।
फिर करेंगे हम दुबारा वोट का वादा जनाब।
आप तो संसद में बैठे ऐश ही कारते रहे
और खाली पेट हमने भूख का देखा अज़ाब।
जब तलक हम एक थे खुशहाल थे, आबाद थे
आप ने जब फुट डाली तो हो गए ख़ाना-ख़राब।
ये नया मौसम हमें कुछ रास आया था मगर
आपके ही मालियों ने नोच डाले सब गुलाब।
आपने सोचा कि फिर से डगमगा जाएँगे हम
अब न बहकाएगी हमको आपकी देसी शराब।