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खाये पान बीरी सी बिलोचन विराजैँ आज / पद्माकर

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खाये पान बीरी सी बिलोचन विराजैँ आज ,
अँजन अंजाये अधराधर अमी के हैँ ।
कहै पदमाकर गुनाकर गुबिन्द देखौ ,
आरसी लै अमल कपोल किन पी के हैँ ।
ऎसो अवलोकिबेई लायक मुखारबिन्द ,
जाहि लखि चन्द अरविन्द होत फीके हैँ ।
प्रेम रस पागि जागि आये अनुरागि यातेँ ,
अब हम जानी कै हमारे भाग नीके हैँ ।


पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।