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पायन आनि परे तो परे रहै / मतिराम
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पायन आनि परे तो परे रहै केती करी मनुहार न झेली ।
मान्यो मनायो न मैँ मतिराम गुमान मे ऎसी गई अलबेली ।
प्यारो गयो दुख मान कहूँ अब कैसे रहूँ यहि राति अकेली ।
आप ते ल्याउ मनाइ कन्हाई को मेरो न लीजियो नाम सहेली ।
मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।