भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पायन आनि परे तो परे रहै / मतिराम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:49, 3 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मतिराम }} <poem> पायन आनि परे तो परे रहै केती करी मनु...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पायन आनि परे तो परे रहै केती करी मनुहार न झेली ।
मान्यो मनायो न मैँ मतिराम गुमान मे ऎसी गई अलबेली ।
प्यारो गयो दुख मान कहूँ अब कैसे रहूँ यहि राति अकेली ।
आप ते ल्याउ मनाइ कन्हाई को मेरो न लीजियो नाम सहेली ।


मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।