भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोऊ कहौ कुलटा कुलनि अकुलानि कहौ / देव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:10, 3 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देव }} <poem> कोऊ कहौ कुलटा कुलनि अकुलानि कहौ , कोऊ कह...)
कोऊ कहौ कुलटा कुलनि अकुलानि कहौ ,
कोऊ कहौ रँकिनि कलँकिनि कुनारी हौँ ।
तैसो नरलोक बरलोक परलोकनि मैँ ,
कीन्ही हौँ अलीक लोक लीकनि ते न्यारी हौँ ।
तन जाउ मन जाउ देव गुरुजन जाउ ,
प्रान किन जाउ टेकु टरत न टारी हौँ ।
बृंदावनवारी बनवारी के मुकुटवारी ,
पीत पटवारी वहि मूरति पै वारी हौँ ।
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।