भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुँजन के कोरे मनु केलिरस बोरे लाल / देव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:18, 3 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देव }} <poem> कुँजन के कोरे मनु केलिरस बोरे लाल , तालन...)
कुँजन के कोरे मनु केलिरस बोरे लाल ,
तालनि के खोरे बाल आवति है नित को ।
अमृत निचोरे कल बोलति निहोरे नेकु ,
सखिनु के डोरे देव डोलै जित तित को ।
थोरे थोरे जोबन बिथोरे देत रूपरासि .
गोरे मुख मोरे हँसि जोरे लेत हित को ।
तोरे लेति रति दुति मोरे लेत मति गति ,
छोरे लेति लोकलाज चोरे लेत चित को ।
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।