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सोती हुई बिटिया को देखकर / अशोक कुमार पाण्डेय
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अभी-अभी हुलसकर सोई हैं इन साँसों में स्वरलहरियां
अभी-अभी इन होठों में खिली है एक ताज़ा कविता
अभी-अभी
उगा है इन आंखों में
नीला चाँद
अभी-अभी मिला है मेरी उम्मीदों को एक मज़बूत दरख़्त अभी-अभी हुलसकर सोई हैं इन साँसों में स्वरलहरियां
अभी-अभी इन होठों में खिली है एक ताज़ा कविता
अभी-अभी
उगा है इन आंखों में
नीला चाँद
अभी-अभी मिला है मेरी उम्मीदों को एक मज़बूत दरख़्त