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फूट गये हीरा की बिकानी कनी हाट हाट / गँग

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फूट गये हीरा की बिकानी कनी हाट हाट ,
काहू घाट मोल काहू बाढ़ मोल को लयो ।
टूट गई लँका फूट मिल्या जो विभीषन है ,
रावन समेत बस आसमान को गयो ।
कहै कवि गँग दुरजोधन से छत्रधारी ,
तनक मे फूँके तेँ गुमान बाको नै गयो ।
फूटे ते नरद उठि जात बाजी चौसर की ,
आपुस के फूटे कहु कौन को भलो भयो ।


गँग का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।