भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आलि हौँ तो गई जमुना जल को / मँडन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:23, 6 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मँडन }} <poem> आलि हौँ तो गई जमुना जल को सु कहा कहौँ बी...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आलि हौँ तो गई जमुना जल को सु कहा कहौँ बीच बिपत्ति परी ।
घहराइकै कारी घटा उनई इतने ही मैँ गागरी सीस धरी ।
रपट्यो पग घाट चड़्यो न गयो कवि मँडन ह्वै के बेहाल गिरी ।
चिरजीवहु नन्द को बारो अरी गहि बाँह गरीब ने ठाढ़ी करी ।


मँडन का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।