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लेकर सीधा नारा / शमशेर बहादुर सिंह

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लेकर सीधा नारा

कौन पुकारा

अंतिम आशाओं की संध्याओं से ?


पलकें डूबी ही-सी थीं --

पर अभी नहीं;

कोई सुनता-सा था मुझे

कहीं;

फिर किसने यह, सातों सागर के पार

एकाकीपन से ही, मानो-हार,

एकाकी उठ मुझे पुकारा

कई बार ?


मैं समाज तो नहीं; न मैं कुल

जीवन;

कण-समूह में हूँ मैं केवल

एक कण ।

--कौन सहारा !

मेरा कौन सहारा !


( १९४१ में लिखित )