भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुन्दर सजाए मंच पर / रवीन्द्र दास
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:42, 6 जून 2009 का अवतरण
सुन्दर सजाए मंच पर
चौंक रही है रौशनी
रंग बिरंगी
खचाखच भरा है हॉल
कि प्रस्तुति है
सुप्रसिद्ध सितारवादिका सुगन्धा दास की
लोग बेसब्र हैं
उनकी बेसब्री के अपने अपने कारण हैं
तरह तरह के लोग
भाँति भाँति की बातें
सुगन्धा दास कोई एक.
आ चुकी है मंच पर मुस्कुराती हुई
निहाल हो चुकी है भीड़
निढ़ाल हो चुकी है भीड़
गज़ब की मोहिनी शक्ति है सुगन्धा दास में
बता रखा है पहले ही
कला समीक्षकों ने
चौंकती रौशनी में नहीं पहुँच रही है
कद्रदानों की नज़र ठीक ठीक
फिर भी आभास है
अपना अपना संचित विश्वास है
तरह तरह के देखनेवाले
हो रहे हैं संतुष्ट अकेले अकेले
सचमुच गज़ब ही चीज़ है
सुगन्धा दास सितारवादिका सुप्रसिद्ध !