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क्या कहें हम / रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति

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हमें छोड़ दिया अकेला
दुनिया रंगीन है मेला

आँख फ़ाड़ कर देख चला मन अलबेला
तलाश रहा है मनोरम बेला
हार-हार कर जीत लिया
हमने जीवन मेला

मुस्कुरा रहे हैं पेड़ पत्थरों को देखकर
दुनिया ने हमें अकेला छोड़ दिया तो क्या

जो चले गए छोड़कर कारों में बैठकर
वो भी थे ज़रूरत / ज़िन्दगी के हमसफ़र