हमार कोऊ का करि है ! / प्रतिभा सक्सेना
हम तो खाइब अम्हाड़ को अचार ,
चुराय के हँडिया से ,
हमार कोऊ का करि है !
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आपुन सपूत केर भर भर थरिया ,
हमका पियाज
-नोन रोटिन पे धरिया !
जेतन मिलि जाय ओही पे संतोस करो
तऊ पै कंटरौल हजार !
हमार कोऊ का करि है !
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थारी में लै-लै बचाय रखि जाइब रे !
उनको परोसो हमार काम आइब रे
तीखी तरकारी बताय छोड़ि जाई जबै,
घिउ डारी दार, रोटी चार !
हमार कोऊ का करि है !
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खींच उहै थरिया पटा पे बैठ जइबे ,
पियाज हरी मिरच तो आपुनो ही लइबे ,
तीखी तरकारी तो बड़ा मजा आई,
सबाद लै-लै खाई घुँघटा मार !
हमार कोऊ का करि है !
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उनका तो देइत गमकौआ सबुनवा ,
सनलैट हमका अउर ऊपर से ठुनकवा
वाही से नहाय लेओ ,बार मींज माटी सों,
नखरा न दिखिबे तुम्हार !
हमार कोऊ का करि है !
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खँजड़ा पे डारि सनलैट ,केर टिकिया ,
धोई नहाई घिसि-घिसि गमकौआ,
वाही से धोइ लेई हम चारि कपरा
खुसबू की अइबे
बहार !
हमार कोऊ का करि है !
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खिरकी पे काहे खरी, बंद कर केवरिया,
आँखि फारि-फारि मति देख, री बहुरिया ,
बाहिर की हवा तोहे लगे नुसकान करी ,
और कहित
खीसें मति काढ़ !
हमार कोऊ का करि है !
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गाल चाहे फूलें और टोंके दिन रात रहें,
रोकें लगावै,
हजार ,चाहे लाख कहे ,
हमार खुस रहिबे , तुम्हार का खरच होत
हम तो हँसिबे करी मुँह फार
हमार कोऊ का करि है !
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उनका बिछावन झका-झक्क चद्दर
हमका दै दीन्हा पुरान ,दलिद्दर !
काहे को सोई ,ऊ बेरंग बिछौना पे ,
सासू-जाये का मजेदार !
हमारो कोऊ का करिहै !