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आजु परभात छबि औरई लखानी तन / राजहँस

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आजु परभात छबि औरई लखानी तन ,
औरे रँग तरुनी तिया को ह्वै गयो ।
राजहँस सफल हिये की चारु आसा भई ,
ललित मनोरथ को बीज बन ब्वै गयो ।
तपनि मिटावन अनँद सरसावन अमल ,
जीवधाम सोँ अमँद घन च्वै गयो ।
आज ही अनूप तेज रखि उर अँतर ,
सभी के सँग साँचोई तिया को तन ह्वै गयो ।


राजहँस का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।