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मैन ऎसो मन मृदु मृदुल मृणालिका के / केशव.

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मैन ऎसो मन मृदु मृदुल मृणालिका के ,
सूत कैसो सुर ध्वनि मननि हरति है ।
दारयोँ कैसो बीज दाँत पाँत से अरुण ओँठ ,
केशोदास देखि दृग आनँद भरति है ।
येरी मेरी तेरी मोँहिँ भावत भलाई तातेँ ,
बूझति हौँ तोहिँ और बूझति डरति है ।
माखन सी जीभ मुख कँज सी कोमलता मे ,
काठ सी कठेठी बात कैसे निकरति है ।


केशव. का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।