भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मोहन आवनकी साई किजोरे / मीराबाई
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:38, 19 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीराबाई }} <poem> मोहन आवनकी साई किजोरे। आवनकी मन भा...)
मोहन आवनकी साई किजोरे। आवनकी मन भावनकी॥ कोई०॥ध्रु०॥
आप न आवे पतिया न भेजे | ए बात ललचावनकी॥को०॥१॥
बिन दरशन व्याकुल भई सजनी। जैशी बिजलीयां श्रावनकी॥ को०॥२॥
क्या करूं शक्ति जाऊं मोरी सजनी। पांख होवे तो उडजावनकी॥ को०॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर | इच्छा लगी हरी बतलावनकी॥ को०॥४॥