भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मत डारो पिचकारी / मीराबाई
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:39, 19 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीराबाई }} <poem> मत डारो पिचकारी। मैं सगरी भिजगई सा...)
मत डारो पिचकारी। मैं सगरी भिजगई सारी॥ध्रु०॥
जीन डारे सो सनमुख रहायो। नहीं तो मैं देउंगी गारी॥ मत०॥१॥
भर पिचकरी मेरे मुखपर डारी। भीजगई तन सारी॥ मत०॥२॥
लाल गुलाल उडावन लागे। मैं तो मनमें बिचारी॥ मत०॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर
नागर। चरनकमल बलहारी॥ मत०॥४॥