भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फूल मंगाऊं हार बनाऊ / मीराबाई
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:54, 19 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीराबाई }} <poem> फूल मंगाऊं हार बनाऊ। मालीन बनकर जा...)
फूल मंगाऊं हार बनाऊ। मालीन बनकर जाऊं॥१॥
कै गुन ले समजाऊं। राजधन कै गुन ले समाजाऊं॥२॥
गला सैली हात सुमरनी। जपत जपत घर जाऊं॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। बैठत हरिगुन गाऊं॥४॥