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हृदय / कविता वाचक्नवी

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हृदय


कैसा बावला बालक है रे!
न झुनझुने की झनझनाहट से बहलता है
न घंटियों से
न खिलौनों से,
न खेल से--।
नेह की ऊष्मा का
माध्यम
क्या तो हो भला?