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 सप्ताह की कविता

  शीर्षक: औरत लोग
  रचनाकार: येव्गेनी येव्तुशेंको

मेरे जीवन में आईं हैं औरतें कितनी
गिना नहीं कभी मैंने
पर हैं वे एक ढेर जितनी

अपने लगावों का मैंने
कभी कोई हिसाब नहीं रक्खा
पर चिड़ी से लेकर हुक्म तक की बेगमों को परखा
खेलती रहीं वे खुलकर मुझसे उत्तेजना के साथ
और भला क्या रखा थ
दुनिया के इस सबसे अविश्वसनीय
बादशाह के पास

समरकन्द में बोला मुझ से एक उज़्बेक-
"औरत लोग होती हैं आदमी नेक"
औरत लोगो के बारे में मैंने अब तक जो लिखी कविताएँ
एक संग्रह पूरा हो गया और वे सबको भाएँ

मैंने अब तक जो लिखा है और लिखा है जैसा
औरत लोगों ने माँ और पत्नी बन
लिख डाला सब वैसा

पुरुष हो सकता है अच्छा पिता सिर्फ़ तब
माँ जैसा कुछ होता है उसके भीतर जब
औरत लोग कोमल मन की हैं दया है उनकी आदत
मुझे बचा लेंगी वे उस सज़ा से, जो देगी मुझे
पुरुषों की दुष्ट अदालत

मेरी गुरनियाँ, मेरी टीचर, औरत लोग हैं मेरी ईश्वर
पृथ्वी लगा रही है देखो, उनकी जूतियों के चक्कर
मैं जो कवि बना हूँ आज, कवियों का यह पूरा समाज
सब उन्हीं की कृपा है
औरत लोगों ने जो कहा, कुछ भी नहीं वृथा है

सुन्दर, कोमलांगी लेखिकाएँ जब गुजरें पास से मेरे
मेरे प्राण खींच लेते हैं उनकी स्कर्टों के घेरे


मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय