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सुनहरे रंग की कालिमा / विम्मी सदारंगाणी

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सी० टी० खानवलकर के उपन्यास `चानी´ की नायिका चानी को समर्पित।


चानी
एक लड़की।
स्कूल में झाड़ू लगाती
गोबर सिर पर लेकर
सारा स्कूल लीपती।

किसी बच्चे की किताब का
फटा हुआ पन्ना सीने से लगाए घूम रही है।

काग़ज़ पर चित्र है।
चित्र में राजकुमार है,
राजकुमारी है।
राजकुमार और राजकुमारी
हाथ-हाथों में दिए खड़े हैं।

चानी को भी इंतज़ार है
अपने राजकुमार का।

उसने सुनहरी रंग भरा है -
राजकुमार के ताज में,
उस के घोड़े की लग़ाम में,
अपने कंगनों में,
अपने बालों में,
अपने कपड़ों में।

चानी को कौन समझाए
कि राजकुमार काग़ज़ का है
कि चानी राजकुमारी नहीं है।
 
कि
उसके लिये तो है -
फटा हुआ काग़ज़ का टुकड़ा,
काग़ज़ का राजकुमार
और
हाथों में रह गई
सुनहरी रंग की कालिमा।
 

सिन्धी से अनुवाद : स्वयं कवयित्री द्वारा