भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सवाल की तलाश में / विम्मी सदारंगाणी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:45, 20 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विम्मी सदारंगाणी |संग्रह= }} <Poem> रातरानी है लड़की...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रातरानी है लड़की
दिन भर ख़ामोश
रात को चंचल और मस्त।

सूरज है लड़की
अपनी आग में स्वयं जलती है
शाम को डूब जाती है।

सपना है लड़की
चादर ओढ़कर
जो झूठ-मूठ की नींद करता है।

काग़ज़ की नाव है लड़की
बहती चली जाती है
किसके हाथ लगेगी
यह परवाह किये बिना।

हवा है लड़की
उसकी हँसी पीछा कर रही है
सुनहरी काग़ज़ के फटे हुए टुकड़ों का।

एक द्वीप है लड़की
उसकी चीख़ें चिल्लाहटें गुम हो जाती हैं
आसपास लिपटी लहरों के शोर में।

पेड़ है लड़की
उसके बदन से नित नई बांहें
और बाँहों में नए हाथ फूटते रहते हैं,
दो हाथों से वह सारा काम नहीं कर पाती।

ब्राइडल क्रीपर फूल है लड़की
साल में सिर्फ़ पंद्रह दिन खिलती है
और बाक़ी तीन सौ पचास दिन
उसकी सज़ा भोगती है।

लड़की एक सच है
जिसे झूठ से डर लगता है
झूठ छाती ठोककर आता है
और सच के सीने पर दाग़ लगा जाता है।

लड़की है एक जवाब
सवाल की तलाश में लगी हुई।


सिन्धी से अनुवाद : स्वयं कवयित्री द्वारा