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विज्ञापन युग / मृत्युंजय प्रभाकर
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पुरखे कहा करते थे
‘सच में बड़ी ताकत होती है’
पीढ़ियों तक चलती रही यह बात
कानों-कान
‘झूठी बात और कागज़ की नाव में कोई फ़र्क नहीं होता’
सुनती रही अनगिनत पीढ़ियाँ
कानों-कान चलती यह तान
एक रात मेरे कान में भी गूँजी
अलसमय सुबह आँख खुलते ही
मेरे सामने पसरा था
विज्ञापन का सुनहरा संसार
‘दूध सी सफ़ेदी’
‘अब और भी सफ़ेद’
‘और भी झागदार’
की चिल्ल-पों
‘अब और भी सफ़ेद’
नकार रहा था
पुरानी सफ़ेदी को
जो उसी कंपनी का प्रोडक्ट था
विज्ञापनों में हर चीज़
पहले से अच्छी और बेहतर होती है
कभी-कभी सोचता हूं
कितना अच्छा होता
अगर यह दुनिया भी
एक विज्ञापन होती।