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तुम्हारे लिए / मृत्युंजय प्रभाकर
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कितना अच्छा हो
ज़िन्दगी एक रात हो
आसमान का बिस्तर हो
और मेरे चांद का आगोश
मज़ा यूँ भी आए
ख़्वाव ही ज़िन्दगी हो जाए
मेरा होना तेरे होने
तेरा होना मेरे होने का
सबब हो जाए
तेरी जुल्फ़ों में
मेरी नफ़स हो
मेरी साँसों में
तेरी ख़ुशबू
हरएक शाम ऐसी हो
ज़िन्दगी एक दरिया हो
और हम
इठलाती-बलखाती
तैरती मछलियाँ
यूँ पहाड़ होना भी मजेदार है
जमे रहें हम
एक-दूसरे के सामने
हज़ारों पीढ़ियों तक
घने जंगल के बीच
डालियाँ उलझाए
दो पेड़
जिसपे दर्ज़ हो
प्यार की इबारत
बर्फ़ की तरह ठोस
सर्द रात में
तुम्हारा नर्म स्पर्श भी
नेक ख़्याल है
यही रात है
जब यह कविता रची जा रही है
और आवाम के खिलाफ़
पुरज़ोर साजिशें भी।