भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चुनौती / महमूद दरवेश
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:41, 23 जून 2009 का अवतरण
तुम मुझे चारों तरफ़ से बांध दो
छीन लो मेरी पुस्तकें और चुरूट
मेरा मुँह धूल से भर दो
कविता मेरे धड़कते हृदय का रक्त है
मेरी रोटी का खारापन
मेरी आँखों का तरलता
यह लिखी जाएगी नाख़ूनों से
आँखॊं के कोटरों से, छुरों से
मैं इसे गाऊंगा
अपनी क़ैद-कोठरी में, स्नानघर में
अस्तबल में, चाबुक के नीचे
हथकड़ियों के बीच, जंज़ीरों में फँसा हुआ
लाखों बुलबुलें मेरे भीतर हैं
मैं गाऊंगा
गाऊंगा मैं
अपने संघर्ष के गीत