भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अशान्तिकाल का गीत / अनातोली परपरा
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:32, 24 जून 2009 का अवतरण (अशान्तिकाल का गीत / अनातोली पारपरा का नाम बदलकर अशान्तिकाल का गीत / अनातोली परपरा कर दिया गया है)
|
समय कैसा आया है यह, मौसम हो गया सर्द
भूल गए हम सारी पीड़ा, भूल गए सब दर्द
मुँह बन्द कर सब सह जाते हैं, करते नहीं विरोध
कहाँ गया मनोबल हमारा, कहाँ गया वह बोध
क्यों रूसी जन चुपचाप सहे अब, शत्रु का अतिचार
क्यों करता वह अपनों से ही, अति-पातक व्यवहार
क्यों विदेशियों पर करते हम, अब पूरा विश्वास
और स्वजनों को नकारते, करते उनका उपहास ?