भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चितवौ जी मोरी ओर / मीराबाई
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:26, 24 जून 2009 का अवतरण
तनक हरि चितवौ जी मोरी ओर।
हम चितवत तुम चितवत नाहीं
- मन के बड़े कठोर।
- मन के बड़े कठोर।
मेरे आसा चितनि तुम्हरी
- और न दूजी ठौर।
- और न दूजी ठौर।
तुमसे हमकूँ एक हो जी
- हम-सी लाख करोर।।
- हम-सी लाख करोर।।
कब की ठाड़ी अरज करत हूँ
- अरज करत भै भोर।
- अरज करत भै भोर।
मीरा के प्रभु हरि अबिनासी
- देस्यूँ प्राण अकोर।।
- देस्यूँ प्राण अकोर।।