भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुमको देखा तो ये ख़याल आया / जावेद अख़्तर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:33, 24 जून 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुमको देखा तो ये ख़याल आया
ज़िन्दगी धूप तुम घना साया

आज फिर दिल ने एक तमन्ना की
आज फिर दिल को हमने समझाया

तुम चले जाओगे तो सोचेंगे
हमने क्या खोया, हमने क्या पाया

हम जिसे गुनगुना नहीं सकते
वक़्त ने ऐसा गीत क्यूँ गाया