Last modified on 24 जून 2009, at 21:56

संचारी संसृति / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:56, 24 जून 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुख-दुख मय यह सृष्टि सतत संचारी है

कभी भोर है, कभी रात अँधियारी है !


केवल सीधी राहों पर चलने वाले

बस अपने ही तन-मन को छलने वाले

हर अँधियारे से टकराने की ख़ातिर

एक अकेले दीपक से जलने वाले

मावस सदा रही पूनम पर भारी है

और राह में पग-पग पर बटमारी है !


हर आँगन में कई-कई दीवारें हैं

तार-तार में अलग-अलग झंकारें हैं

तट तटस्थ है, धार के विरोधी तेवर

माँझी घायल है, टूटी पतवारें हैं

आर-पार दोनों में मारामारी है

नाव न डूबे किसकी जिम्मेदारी है !


राही को सागर-तल तक जाना होगा

नभ के छोरों को भी छू आना होगा

सुख की सरिता को सीमाओं में रहकर

दुख के पर्वत से भी टकराना होगा

संसृति वृहद खेल, जीवन लघु पारी है

सब की अपनी-अपनी हिस्सेदारी हैं !