भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वो जिबह करके यह कहते हैं / शाद अज़ीमाबादी
Kavita Kosh से
चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:46, 2 जुलाई 2009 का अवतरण
वोह जिबह करके यह कहते हैं मेरी लाश से-।
"तड़प रहा है कि मुँह देखता है तू मेरा॥
कराहने में मुझे उज़्र क्या मगर ऐ दर्द।
गला दबाती है रह-रह के आबरू मेरा॥
कहाँ किसी में यह क़ुदरत सिवाय तेग़े-निगाह।
कि हो नियाम में और काट ले गुलू मेरा॥