भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सरापासोज़ है ऐ दिल!सरापा नूर हो जाना / शाद अज़ीमाबादी

Kavita Kosh से
चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:54, 2 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शाद अज़ीमाबादी }} <poem> सरापासोज़<ref>पूर्ण रूपेण जलन...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सरापासोज़<ref>पूर्ण रूपेण जलना</ref> है ऐ दिल! सरापा नूर हो जाना।
अगर जलना तो जलकर, जलवागाहे-तूर हो जाना॥
हमारे ज़ख्मे-दिल ने दिल्लगी अच्छी निकाली है।
छुपाये से तो छुप जाना मगर नासूर हो जाना

ख़याले-वस्ल को अब आरज़ू झूला झुलाती है।
क़रीब आना दिले-मायूस के, फिर दूर हो जाना॥

शबे-वस्ल अपनी आँखों ने अजब अन्धेर देखा है।
नक़ाब उनका उलटना रात का काफ़ूर हो जाना॥

शब्दार्थ
<references/>