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मुझे फूल मत मारो / मैथिलीशरण गुप्त

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मुझे फूल मत मारो

मैं अबला बाला वियोगिनी कुछ तो दया विचारो।

होकर मधु के मीत मदन पटु तुम कटु गरल न गारों

मुझे विकलता तुम्हें विफलता ठहरो श्रम परिहारो।

नही भोगनी यह मैं कोई जो तुम जाल पसारो

बल हो तो सिन्दूर बिन्दु यह यह हर नेत्र निहारो

रूप दर्प कंदर्प तुम्हें तो मेरे पति पर वारो

लो यह मेरी चरण धूलि उस रति के सिर पर धारो।