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दरमियाँ / अभिज्ञात
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अभी तो दरमियाँ फ़ासलो के जंगल है
अभी आगाज़ से पहले भी कई मुश्किल है
अपनी हर हाल में मर जाने की तमन्ना है
मिले ये चैन कि अपना-सा कोई क़ातिल है
एक हम हैं कि कभी वास्ता नही रखते
कि अपने सामने मायूस अपनी मंज़िल है