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रोशनाई / किरण मल्होत्रा

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दुःखों की स्याही
फैल जाए अगर
देती केवल कालिमा

और यही कहीं अगर
कलम में भर ली जाए
करती रोशन

आने वाली पीढियाँ
दीप-सी प्रज्जवलित
आभामान

प्रकाश पुंज-सी
बन कर रोशनाई