भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ और अशआर / फ़ानी बदायूनी
Kavita Kosh से
चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:10, 6 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: तूने करम किया तो ब-उनवाने रंजेज़ीस्त। ग़म भी मुझे दिया तो ग़मे-जा...)
तूने करम किया तो ब-उनवाने रंजेज़ीस्त। ग़म भी मुझे दिया तो ग़मे-जाविदाँ न था॥
आ गई है तेरे बीमार के मुँह पर रौनक़। जान क्या जिस्म से निकली, कोई अरमाँ निकला॥
रस्मेख़ुद्दारी से गो वाक़िफ़ न थी दुनिया-ए-इश्क़। फिर भी अपना ज़ख़्मेदिल शरमिन्द-ए-मरहम न था॥