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मैं जब / सुतिन्दर सिंह नूर

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मैं जब
तेरे अंगों में उतर गया
मुझे घोंसलों में
चहचहाते पक्षी
और
आँखें खोलतीं नर्म कोमल पत्तियाँ
बहुत प्यारी लगने लगीं।
0

जब मैं
तेरे दो झीलों वाले शहर में आया
तफ़ान मेरी आँखों में जागे
और हंस
उन झीलों में डूब गए।
0

जो सूर्य
तुम से बिछुड़ते हुए
तेरे शहर में
डूब गया था
वही सूर्य मैं
इस शहर में ढूँढ़ रहा हूँ।


मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : सुभाष नीरव