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मकान मालिक का गीत / के० सच्चिदानंदन
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मिट्टी, लकड़ी, पत्थर और कर्ज़ से
मैंने बनाया एक मकान
बारिश में धुल गए पत्थर, मिट्टी
दीमक खा गए लकड़ी सारी
फिर बचा सिर्फ़ कर्ज़ा
अब जीता हूँ मैं उसे चुकाने को
अनुवाद : राजेन्द्र धोड़पकर