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आओ, जल भरे बर्तन में / रघुवीर सहाय

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आओ, जल भरे बर्तन में झाँकें साँस से पानी में डोल उठेंगी दोनों छायाएँ चौंककर हम अलग-अलग हो जाएंगे जैसे अब, तब भी मिलाएंगे आँखें, आओ पैठी हुई जल में चाया साथ-साथ भींगे झुके हुए ऊपर दिल की ध़अकन-सी काँपे करती हुई इंगित कभी हाँ के कभी ना के

आओ, जल भरे बर्तन में झाँकें।