भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क़लम / इला प्रसाद
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:22, 14 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इला प्रसाद }} <poem> मैं बोलती थी और कोई नहीं सुनता थ...)
मैं बोलती थी
और कोई नहीं
सुनता था मुझे।
मैं कलम हो गई
और अब,
सब सुन रहे हैं मुझे।