अभी-अभी / शहंशाह आलम
</poem> अभी-अभी एक शब्द जनमा उस बच्चे के मुंह से माँ से जनमी एक पूरी भाषा समृद्ध
अभी-अभी यह समय था तुम्हारा अब हुआ किसी अन्य का
अभी-अभी वह दरख़्त हुआ उस चिड़िया का एकदम अपना
अभी-अभी एक पूरा युद्ध लड़ा गया खुरपी से हंसिया से कुदाल से लाठी से
अभी-अभी खुली एक ट्रेन कि दूसरी आ लगी झट से
अभी-अभी रसोईघर से निकल फैली इस पृथ्वी पर लहसुन की गंध अनोखी
अभी-अभी यह देह हुई उसकी यह बीज यह कामना यह शोर यह एकांत हुआ उसी का
अभी-अभी आग हुई मेरी फाग हुआ मेरा राग हुआ मेरा
अभी-अभी वहां था सूर्यास्त अब दिखता था सूर्योदय वहीं पर
अभी-अभी जो भूल गया था रास्ता अपने घर का बता रहा था किसी अन्य को उसके घर का रास्ता
अभी-अभी वह मटका था खाली अब भरा था मीठे जल से
अभी-अभी एक लड़का कूदा पानी में बहा धार में एक दूसरे लड़के ने लाँघा अपने ही अंदर के पुरुष को
अभी-अभी जलतरंग बजाया उसने अद्भुत ओझल को प्रकट किया उसी ने
अभी-अभी मैं धँसा तुम्हारी ही धमक में तुम धँसी मुझ में सन्नाटे को चीर </poem>