शे’र / यगाना चंगेज़ी
फिरते हैं भेस में हसीनों के।
कैसे-कैसे डकैत थांग-की-थांग॥
आह! यह बन्दये-ग़रीब आपसे लौ लगाये क्यों?
आ न सके जो वक़्त पर, वक़्त पै याद आये क्यों??
दीद की इल्तजा करूँ? तिश्ना ही क्यों न जान दूँ?
परदयेनाज़ खुद उठे, दस्ते-दुआ उठायें क्यों??
बदल न जाय ज़माने के साथ नीयत भी।
सुना तो होगा जवानी का एतबार नहीं॥
नतीजा कुछ भी हो लेकिन हम अपना काम करते हैं।
सवेरे ही से दूरन्देश फ़िक्रे-शाम करते हैं॥
दावरे-हश्र होश्यार, दोनों में इम्तयाज़ रख।
बन्दये-नाउम्मीद और बन्दये-बेनियाज़ में॥
यादे-खु़दा का वक़्त भी आयेगा कोई या नहीं?
यादे-गुनाह कब तलक शामोसहर नमाज़ में??
मौत माँगी थी खुदाई तो नहीं माँगी थी।
ले दुआ कर चुके अब तर्के-दुआ करते हैं॥
मज़ा गुनाह का जब था कि बावज़ू करते।
बुतों को सजदा भी करते तो क़िब्लारू करते॥
जो रो सकते तो आँसू पूछनेवाले भी मिल जाते।
शरीके-रंजोग़म दामन से पहले आस्तीं होते॥
जैसे दोज़ख़ की हवा खाके अभी आया है।
किस क़दर वाइज़े-मक्कार डराता है मुझे॥
जलवए-दारो-रसन अपने नसीबों में कहाँ?
कौन दुनिया की निगाहों पै चढ़ाता है मुझे॥
ताअ़त हो या गुनाह पसे-परदा खू़ब है।
दोनों का मज़ा जब है कि तनहा करे कोई॥
बन्दे न होंगे, जितने खुदा हैं ख़ुदाई में।
किस-किस ख़ुदा के सामने सजदा करे कोई॥
इतना तो ज़िन्दगी का कोई हक़ अदा करे।
दीवानावार हाल पै अपने हँसा किए॥
हँसी में लग़ज़िशे-मस्ताना उड़ गई वल्लाह।
तो बेगुनाहों से अच्छे गुनाहगार रहे।
ज़माना इसके सिवा और क्या वफ़ा करता।
चमन उजड़ गया काँटे गले का हार रहे॥
तौबा भी भूल गए इश्क़ में वो मार पड़ी।
ऐसे ओसान गये हैं कि ख़ुदा याद नहीं॥
क्या अजब है कि दिले-दोस्त हो मदफ़न अपना।
कुश्तये-नाज़ हूँ मैं क़ुश्तये-बेदाद नहीं॥
तो क्या हमीं है गुनहगार, हुस्नेयार नहीं?
लगावटों का गुनाहों में क्या शुमार नहीं?
ज़ीस्त के हैं वही मज़े वल्लाह।
चार दिन शाद, चार दिन नाशाद॥
सब्र इतना न कर कि दुश्मन पर।
तल्ख़ हो जाय लज़्ज़ते-बेदाद॥
गला न काट सके अपना वाये नाकामी।
पहाड़ काटते हैं रोज़ोशब मुसीबत के॥
मौत आई आने दीजिए परवा न कीजिए।
मंज़िल है ख़त्म सजदये-शुकराना कीजिए॥
दीवानावार दौड़ के कोई लिपट न जाय।
आँखों में आँख डाल के देखा न कीजिए॥