भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आशिक़ी में है महवियत दरकार / आसी ग़ाज़ीपुरी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:47, 19 जुलाई 2009 का अवतरण
आशिक़ी में है महवियत दरकार।
राहते-वस्ल-ओ-रंजे-फ़ुरक़त क्या?
न गिरे उस निगाह से कोई।
और उफ़्ताद क्या, मुसीबत क्या?
जिनमें चर्चा न कुछ तुम्हारा हो।
ऐसे अहबाब, ऐसी सुहबत क्या?
जाते हो जाओ, हम भी रुख़सत हैं।
हिज्र में ज़िन्दगी की मुद्दत क्या?