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हम से जाओ न बचाकर आँखें / अंजना संधीर

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हम से जाओ न बचाकर आँखें
यूँ गिराओ न उठाकर आँखें

ख़ामोशॊ दूर तलक फ़ैली है
बोलिए कुछ तो उठाकर आँखॆं

अब हमें कोई तमन्ना ही नहीं
चैन से हैं उन्हें पाकर आँखॆं

मुझको जीने का सलीका आया
ज़िन्दगी ! तुझसे मिलाकर आँखें।