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परिस्तारेमुहब्बत की मुहब्बत ही शरीअ़त है / सीमाब अकबराबादी

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परिस्तारे-मुहब्बत की मुह्ब्बत ही शरीअ़त है।
किसी को याद करके आह कर लेना इबादत है॥

जहाँ दिल है, वहाँ वो है, वहाँ सब कुछ।
मगर पहले मुक़ामे-दिल समझने की ज़रूरत है॥

बहुत मुश्किल है क़ैदे-ज़िंदगी में मुतमईन होना।
चमन भी इक मुसीबत था, क़फ़स भी इक मुसीबत है॥

मेरी दीवानगी पर होश वाले बहस फ़र्मायें।
मगर पहले उन्हें दीवाना बनने की ज़रूरत है।

शगुफ़्ते-दिल की मुहलत उम्र भर मुझको न दी ग़म ने।
कली को रात भर में फूल बन जाने की फ़ुर्सत है॥