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वह कंज सो कोमल / ठाकुर
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वह कंज सो कोमल, अंग गुपाल को, सोऊ सबै पुनि जानति हौ।
बलि नेक रुखाई धरे कुम्हलात, इतौऊ नहीं पहिचानति हौ॥
कवि 'ठाकुर या कर जोरि कह्यो, इतने पै मनै नहिं मानति हौ।
दृग बान ये भौंह कमान कहौ, अब कान लौं कौन पै तानति हौ॥