पहली बूंद / ठाकुरप्रसाद सिंह
यह बादल की पहली बूंद कि यह वर्षा का पहला चुम्बन
स्मृतियों के शीतल झोकों में झुककर कांप उठा मेरा मन।
बरगद की गंभीर बांहों से बादल आ आंगन पर छाए
झांक रहा जिनसे मटमैला थका चांद पत्तियां हटाए
नीची-ऊंची खपरैलों के पार शांत वन की गलियों में
रह-रह कर लाचार पपीहा थकन घोल देता है उन्मन
यह वर्षा का पहला चुम्बन।
पिछवारे की बंसवारी में फंसा हवा का हलका अंचल
खिंच-खिंच पडते बांस कि रह-रह बज-बज उठते पत्ते चंचल
चरनी पर बांधे बैलों की तडपन बन घण्टियां बज रहीं
यह ऊमस से भरी रात यह हांफ रहा छोटा-सा आंगन
यह वर्षा का पहला चुम्बन।
इसी समय चीरता तमस की लहरें छाया धुंधला कुहरा,
यह वर्षा का प्रथम स्वप्न धंस गया थकन में मन की, गहरा
गहन घनों की भरी भीड मन में खुल गए मृदंगों के स्वर
एक रूपहली बूंद छा गई बन मन पर सतरंगा स्पन्दन
यह वर्षा का पहला चुम्बन।