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टूटी पडी है परम्परा / श्रीकांत वर्मा

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टूटी पडी है परम्परा
शिव के धनुष-सी रखी रही परम्परा
कितने निपुण आए-गए
धनुर्धारी।
कौन इसे बौहे? और कौन इसे
कानों तक खींचे?
एक प्रश्नचिह्न-सी पडी रही परम्परा।
मैं सबमें छोटा और सबसे अल्पायु-
मैं भविष्यवासी।
मैंने छुआ ही था, जीवित हो उठी।
मैंने जो प्रत्यंचा खींची
तो टूट गई परम्परा।
मुझ पर दायित्व।
कंधों पर मेरे ज्यों, सहसा रख दी हो
किसी ने वसुंधरा।
सौंप मझे मर्यादाहीन लोक
टूटी पडी है परम्परा।