अम्बर की बातें क्या जानूं / नर्मदाप्रसाद खरे
मैंने धरती के गीत सुने, अम्बर की बातें क्या जानूं?
धरती ने पहले बोले सुने, धरती पर पहला स्वर फूटा,
धरती ने जीवन दान दिया, धरती पर जीवन सुख लूटा,
धरती माता के अंचल में, ममतामय स्नेह दुलार मिला,
धरती ने आंसू झेले हैं, धरती पर पहला प्यार खिला,
धरती ने स्वर्ण बिखेरा है, नभ की सौगातें क्या जानूं?
फूलों ने हंस मोहकता दी, कलियों ने मृदु मुसकानें दीं,
मंजरियों ने मादकता दी, कोकिल ने मधुमय तानें दीं,
बल्लरियों ने गलबांहें दे, प्राणों को नव संगीत दिया,
कांटों ने कठिन परीक्षा ले, जीवन का प्रेरक गीत दिया,
सोने के दिन कब देख सका, चांदी की रातें क्या जानूं?
सूरज धरती की छाती पर, संपूर्ण तेज अजमाता है,
नभ अपने वज्र प्रहारों से, धरती के प्राण कंपाता है,
ज्वालामुखियों-भूकम्पों ने, धरती पर प्रलय मचाया है,
मानव ने मानव के वध से, धरती पर खून बहाया है,
लपटों शोलों से खेला हूँ, शीतल बरसातें क्या जानूं?
ढह गए महल, गड गए मुकुट, धरती अब भी मुसकाती है,
हैं चांद सितारे मौन खडे, यह धरती अब भी गाती है,
धरती पर कितने चरण चले, कितनों ने रोया-गाया है
धरती की नीरव भाषा को, पर कौन भला पढ पाया है,
मैंने तो भू के अंक पढे, नभ लिपि की घातें क्या जानूं?
मैंने धरती के गीत सुने, अम्बर की बातें क्या जानूं?