भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बातैं लगाय सखान तें न्यारो कै / रघुनाथ
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:59, 29 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रघुनाथ }} Category:पद <poeM>बातैं लगाय सखान तें न्यारो क...)
बातैं लगाय सखान तें न्यारो कै, आज गह्यो बृषभान किसोरी।
केसरि सों तन मज्जन कै, दियो अंजन ऑंखिन मैं बरजोरी॥
हे 'रघुनाथ कहा कहौं कौतुक, प्यारे गोपालै बनाय कै गोरी।
छोडि दियो इतनो कहि कै, बहुरौ इत आइयो खेलन होरी॥