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आहों का है प्रासन यारो / प्रेम भारद्वाज
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आहों का है प्रासन यारो
चाहों का निर्वासन यारो
दशरथ है मरणासन्न यारो
कैकइयों का शासन यारो
परिधानों का चयन उधर है
इधर है चौका बासन यारो
ठोकर खाकर भी मुसकाना
कितना है अनुशासन यारो
पौरुषहीन मरा जो दशरथ
राम को था निष्कासन यारो
जनता भई जनार्दन जब भी
डोला है सिंहासन यारो
सभा वही प्रस्ताव वही है
बदले हैं बस आसन यारो
पुल से अभी न जाए कोई
हुआ नहीं उदघाटन यारो
एक कन्हैया कितना दौड़े
गली-गली दुःशासन यारो
हावी है शहरी तहज़ीबें
प्रेम-कथा बनवासन यारो
रखते कायम प्रेम पहाड़ी
मिलना था निष्कासन यारो