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कहता तो है इसे कि ये लोगों की सनक है / प्रेम भारद्वाज

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कहता तो इसे है कि यह लोगों की सनक है
इन हालात का वो असल में खुद ही तो जनक है

तुम देखना क्या करके गुज़रना है उन्हें अब
अपना तो सोचना भी उसे कष्ट जनक है

रोटी की समस्या है जिन्हें उनको नहीं मतलब
कि तबला भी है बाजा है चूड़ी की खनक है

तुम दिन मे6 देखना कभी निकले न ये जंजीर
लगती जो रात में तुम्हें पायल की झनक है

हमलावरों का काफिला जंगल से चला है
बढ़ते नगर के काम में कुछ ऐसी भनक है

माहौल नफरतों का है इस आग में प्रेम
तेरी महज़ दलील भी संतोषजनक है